सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को..पढ़ें तहज़ीब हाफ़ि के शेर..
जंगलों
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर, ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
बसर रात
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ, वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
पानी लाया
पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे, मैं जंगल में पानी लाया करता था
साँस लेना
मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ, साँस लेना भी शाइरी है मुझे
चराग़ों
इस लिए रौशनी में ठंडक है, कुछ चराग़ों को नम किया गया है
वसवसे
तुझ को पाने में मसअला ये है, तुझ को खोने के वसवसे रहेंगे
बाग़
सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को, हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है
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