थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ..पढ़ें मुनीर नियाजी के शेर..
रौनक़ें
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास, रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
वक़्त
वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में मुनीर, आज कल होता गया और दिन हवा होते गए
ख़राब दिन
वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन, वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन
दिल चराग़
आ गई याद शाम ढलते ही, बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
ग़म से चूर
कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया, मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था
हुस्न वालों
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को, हुस्न वालों की सादगी न गई
हैरत हुई
कोई तो है मुनीर जिसे फ़िक्र है मिरी, ये जान कर अजीब सी हैरत हुई मुझे
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