सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर...पढ़ें अकबर इलाहाबादी के बेहतरीन शेर...
अरमान
सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है, जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है
दिलबरी
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल, इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
फ़रियाद
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त, हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
मज़हब
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें, मज़हब के झगड़े छोड़ें तो पेशे को क्या करें
अक़्ल
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ, जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ
क़यामत
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है, क़यामत है सितम है दिल फ़िदा है जान हाज़िर है
बदनामी
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए, कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
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