पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा...पढ़िए तहज़ीब हाफ़ी के बेहतरीन शेर...
ज़ेहन
तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया, इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
छाँव
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ, जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
मात
ये एक बात समझने में रात हो गई है, मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
लिपट
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है, कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
साँसें
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें, दिल पे आँखें रक्खें तेरी साँसें देखें
उदासी
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर, ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
छतरी
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा, मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
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