कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी..पढ़ें परवीन शाकिर के शेर..


2024/01/04 23:20:45 IST

बेवफ़ा

    उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई, जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था

दुल्हन

    बारहा तेरा इंतिज़ार किया, अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह

रुस्वाई

    अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ, इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

दस्तरस

    मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो, मुझे मेरी रज़ा से माँगता है

बिखरने

    अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई, और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई

गुज़र

    कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए, पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए

राय

    राय पहले से बना ली तू ने, दिल में अब हम तिरे घर क्या करते

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