कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी..पढ़ें परवीन शाकिर की बेहतरीन शायरी..


2023/12/30 23:06:05 IST

रुस्वाई

    अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ, इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

आज़माऊँगी

    कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी, मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी

क़ातिल

    अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं, रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे

काँटों

    काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन, तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

दर्द

    पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है, फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

जुगनू

    जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें, बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए

उलझ

    तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें, अपने हाथों की लकीरों से उलझ जाती हैं

View More Web Stories