झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं...पढ़ें कैफ़ी आज़मी के शेर...
रोज़ बस्ते हैं कई शहर
रोज़ बस्ते हैं कई शहर नए, रोज़ धरती में समा जाते हैं..
दीवाना तेरे शहर में
आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ, आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में..
दो गज़ कफ़न
इन्साँ की ख़्वाहिशों की कोई इन्तिहा नहीं, दो गज़ ज़मीं भी चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद.
दिल बे-क़रार है
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मेरी तरह तेरा दिल बे-क़रार है कि नहीं..
मेरा बचपन भी साथ ले आया
मेरा बचपन भी साथ ले आया, गाँव से जब भी आ गया कोई..
उन्हें छेड़े जा रहे हो
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो..
नाख़ुदा के साथ..
गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो, डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ..
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