ये एक बात समझने में रात हो गई है...पढ़ें तहज़ीब हाफ़ी के शेर..
छाँव
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ, जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया.
रात
ये एक बात समझने में रात हो गई है. मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है.
उदासी
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है, कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
चेहरा देखें
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें, दिल पे आँखें रक्खें तेरी साँसें देखें
मोहब्बत
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो, तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो
सब कुछ पता
रुक गया है वो या चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है, उसने शादी भी की है किसी से और गावों में क्या चल रहा है
मुसीबत
मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को, ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है.
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