बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है...पढ़ें मुनव्वर राना के शेर
शौक़
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है...पढ़ें मुनव्वर राना के शेर
बरसात
गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना...आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले
आदतें
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी...तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
मय्यत
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते...हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
पाकीज़ा
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद...सिमट कर शर्म सारी एक बोसे में चली आई
क़िस्सा
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी...चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं
क़ब्र-ए-मुक़र्रर
थकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गए...हम अपनी क़ब्र-ए-मुक़र्रर में जा के लेट गए
उर्दू और हिन्दी
सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में...कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता
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