दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं ...पढ़े परवीन शाकिर के खूबसूरत शेर
हुस्न
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ ...दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
बादल
इतने घने बादल के पीछे ...कितना तन्हा होगा चाँद
ख़ुशी
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी ...दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
इंतिज़ार
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी ...इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
इंतिज़ार
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी ...इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
रुस्वाई
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने ...बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
मौसम
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए ...और कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी
उम्मीद
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं ...अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
तकल्लुफ़
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की ...और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए
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