छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहार...पढ़े हसरत मोहानी के शेर...


2024/02/17 22:01:07 IST

दुज़दीदा-निगाही

    भूली नहीं दिल को तिरी दुज़दीदा-निगाही, पहलू में है कुछ कुछ ख़लिश-ए-तीर अभी तक

ख़्वाबों की ताबीरें कहीं

    इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा, सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं

सवाद-ए-वतन में था

    ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनी, जो रौशनी कि शाम-ए-सवाद-ए-वतन में था

ए-इज़हार कहाँ से लाऊँ

    पुर्सिश-ए-हाल पे है ख़ातिर-ए-जानाँ माइल, जुरअत-ए-कोशिश-ए-इज़हार कहाँ से लाऊँ

मज़ाक़-ए-सुख़न से दूर

    रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह, वाइज़ भी किस क़दर है मज़ाक़-ए-सुख़न से दूर

तुम भी हँसते हो मिरे हाल पे

    ख़ंदा-ए-अहल-ए-जहाँ की मुझे पर्वा क्या है, तुम भी हँसते हो मिरे हाल पे रोना है यही

बादा ने पुर-नूर कर दिया

    दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया, साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया

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