तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ...पढ़ें जावेद अख्तर के शेर...
दीवाने के सर देखिए
कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए, क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए
शौक़ की ये इंतिहा
हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी, क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी
पुर-सुकूँ लगती है
पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत, पैरों की बे-ताबियाँ पानी के अंदर देखिए
अजीब मेले थे
थीं सजी हसरतें दुकानों पर, ज़िंदगी के अजीब मेले थे
है पाश पाश
है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है, वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का
ख़ून से सींची है
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के, वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
उस के बंदों को देख कर कहिए, हम को उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
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