मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन...पढ़ें जावेद अख्तर के शेर..


2024/03/06 22:50:45 IST

फिर ख़मोशी

    फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है, फिर ख़यालात ने ली अंगड़ाई

दुख के जंगल में

    दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग, जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग

छत की कड़ियों

    छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर, मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं

पुकारे तो पुकारे कैसे

    हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में, कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे

मैं भूल जाऊँ तुम्हें

    मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है, मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ

मुझ को धोका दे

    आगही से मिली है तन्हाई, आ मिरी जान मुझ को धोका दे

ए'तिबार जाता रहा

    खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा, ख़ुलूस तो है मगर एतिबार जाता रहा

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