दीवाना पूछता है ये लहरों से बार बार...पढ़ें कैफ़ी आज़मी के शेर..


2024/01/31 21:50:03 IST

नाख़ुदा के साथ

    गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो, डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ

धड़कनों को गिन के बता

    तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं

क़ाफ़िला तो चले

    ख़ार-ओ-ख़स तो उठें, रास्ता तो चले, मैं अगर थक गया, क़ाफ़िला तो चले

याद इतना

    दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं, याद इतना भी कोई न आए

मेरा बचपन

    मेरा बचपन भी साथ ले आया, गाँव से जब भी आ गया कोई

सदियाँ गुज़र गईं

    पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा

    जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा

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