तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको...पढ़ें मुनव्वर राना के शेर
खिड़की
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता...तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने
यादों
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे...कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
दामन
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक....मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
जिस्म
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको...तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
फ़रिश्ते
फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं...वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
माँ बाप
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ...इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
बुनियाद
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना...जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
आईना
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में...ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
ज़ख़्म
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा....अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
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