अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला...पढ़ें निदा फ़ाज़ली के शेर..
तबीअ'त
कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं, हर एक से अपनी भी तबीअत नहीं मिलती
दुनिया
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया, बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
सँभल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता, मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो
मुलाक़ात हो गई
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए, इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
एक महफ़िल
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक, जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
ढूँडती रहती हैं निगाहें
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें, क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
शहर में तन्हा होगा
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
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