तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था...पढ़ें निदा फ़ाज़ली के शेर...
निकल सको तो चलो
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
शहर में तन्हा होगा
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
दौलत नहीं मिलती
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती, ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
ढूँडती रहती हैं निगाहें,
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें, क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
अकेला होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक, जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
मुलाक़ात हो गई
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए, इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
हाथ बढ़ा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है, वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
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