अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला..पढ़ें निदा फ़ाज़ली के शेर...
ख़फ़ा हैं
कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं, हर एक से अपनी भी तबीअत नहीं मिलती
मुलाक़ात हो गई
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए, इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
नज़रों का धोका
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है, वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
होंटों का तबस्सुम
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे, रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
ख़ानों में बट गया
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया, होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
मगर अजनबी रहे
बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे, मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
मुझी में है समुंदर मेरा
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा, मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समुंदर मेरा
View More Web Stories