इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम...पढ़ें परवीन शाकिर के शेर...
इंतिसाब कर देगा
मिरी तरह से कोई है जो ज़िंदगी अपनी, तुम्हारी याद के नाम इंतिसाब कर देगा
हथेलियों की दुआ
हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो, कभी तो रंग मिरे हाथ का हिनाई हो
दिल पर जमी
अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई, बहुत दिनों से तो ये हौज़ साफ़ भी न हुआ
ज़ख़्मों के हिसाबों
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार, मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह
बादल भीगता है
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ, ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ
सम्त से बर्बाद करे
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर इस का, वो मुसाफ़िर इसे हर सम्त से बर्बाद करे
तीर सीने में उतारा
जंग का हथियार तय कुछ और था, तीर सीने में उतारा और है
View More Web Stories