हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा... पढ़ें परवीन शाकिर के शेर


2024/01/16 16:48:36 IST

शख़्स

    अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं ....अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

ज़ख़्म

    हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा...क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा

सब्र

    वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया ....बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता

तकल्लुफ़

    बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की...और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए

बिछड़ना

    यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर...जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना

शहर

    मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई...वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया

काजल

    लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब...हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ

ख़सारा

    हारने में इक अना की बात थी...जीत जाने में ख़सारा और है

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