कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी... पढ़ें परवीन शाकिर के शेर
परवीन शाकिर के शेर
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी ,दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर के शेर
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की , चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
परवीन शाकिर के शेर
सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखता ,एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी
परवीन शाकिर के शेर
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें, शीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
परवीन शाकिर के शेर
उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था , अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी
परवीन शाकिर के शेर
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर , हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी
परवीन शाकिर के शेर
उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं ,उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी
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