आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर...पढ़ें सलीम कौसर के शेर...


2024/02/16 21:56:08 IST

अपनी हदों में क़ैद हैं

    क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं, कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं

ख़्वाब से जगाते हुए

    कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए, वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए

राय का इज़हार

    और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी, हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं

आईना कोई और है

    मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है, सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है

सोच कर मोहब्बत की

    हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया, तुम ने क्या सोच कर मोहब्बत की

वक़्त की रफ़्तार

    वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है सलीम, ये कभी वक़्त की रफ़्तार हुआ करते थे

साहिलों के सन्नाटे

    पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे, जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए

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