साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला..पढ़ें सलीम कौसर के शेर...


2024/03/09 23:09:38 IST

तुम तो कहते थे

    तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए, फिर पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ रात-भर रोता है कौन

याद का ज़ख़्म भी

    याद का ज़ख़्म भी हम तुझ को नहीं दे सकते, देख किस आलम-ए-ग़ुर्बत में मिले हैं तुझ से

अब जो लहर है

    अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी, इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता

क्यूँ नहीं मुश्किल समझते हो

    दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो, तुम दोस्त हो तो क्यूँ नहीं मुश्किल समझते हो

तैराक वही है

    ज़ोरों पे सलीम अब के है नफ़रत का बहाव, जो बच के निकल आएगा तैराक वही है

तन्हाइयों की ओट से

    साए गली में जागते रहते हैं रात भर, तन्हाइयों की ओट से झाँका न कर मुझे

बाब-ए-हुनर

    इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र, इतनी आसानी से तो बाब-ए-हुनर खुलता नहीं

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