सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है..पढ़ें अकबर इलाहाबादी के चुनिंदा शेर..
दिलबरी
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल, इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
फ़रियाद
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त, हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
मज़हब
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें, मज़हब के झगड़े छोड़ें तो पेशे को क्या करें
चमकता
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से, हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है
जवानी
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए, कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
आशिक़ी
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम, हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए
निगाहें
जिस तरफ़ उठ गई हैं आहें हैं, चश्म-ए-बद-दूर क्या निगाहें हैं
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