शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है...पढ़ें अली सरदार ज़ाफरी के शेर..


2024/02/11 18:52:40 IST

निकली हुई दुआ तुम हो

    कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में, लब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो

तेरी सख़ावत शबनम है

    प्यास जहाँ की एक बयाबाँ तेरी सख़ावत शबनम है, पी के उठा जो बज़्म से तेरी और भी तिश्ना-काम उठा

अपना गुलिस्ताँ लाता है

    ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है, नग़्मा मिरा अपने दामन में आप अपना गुलिस्ताँ लाता है

दे रहे हैं फ़रेब

    दिल-ओ-नज़र को अभी तक वो दे रहे हैं फ़रेब, तसव्वुरात-ए-कुहन के क़दीम बुत-ख़ाने

रहगुज़र में है

    परतव से जिस के आलम-ए-इम्काँ बहार है, वो नौ-बहार-ए-नाज़ अभी रहगुज़र में है

इंकार का रंग

    तह-ए-आरिज़ जो फ़रोज़ाँ हैं हज़ारों शमएँ, लुत्फ़-ए-इक़रार है या शोख़ी-ए-इंकार का रंग

सुब्ह पे लहराते हैं

    फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन, सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं

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