पढ़ें इश्क पर अल्लामा इक़बाल के चुनिंदा शेर
बुलंद
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
दीद के क़ाबिल
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख
नर्गिस
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
महफ़िलों
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूं या रब, क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
निगाह
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का, न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
सारे जहां से अच्छा
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा
मुसाफ़िर
ढूंढ़ता फिरता हूं मैं इक़बाल अपने आप को, आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं
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