जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क...पढ़ें कैफ़ी आज़मी के चुनिंदा शेर..
सदियाँ गुज़र गईं
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं
सलीक़ा
जो वो मेरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा
दिल बे-क़रार
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मेरी तरह तेरा दिल बे-क़रार है कि नहीं
ज़ख़्मों
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
दिल लगाए
लैला ने नया जनम लिया है, है क़ैस कोई जो दिल लगाए
निशाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए, नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ, आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में
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