क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा..पढ़ें मुनीर नियाजी के चुनिंदा शेर..


2024/01/22 22:51:42 IST

अजब मुश्किल

    दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़, याद पीछे खींचती है आस आगे की तरफ़

दरिया

    अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं, इन नेकियों को हम तो दरिया में डाल आए

दहकाए

    बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना, इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना

दरमियाँ

    मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ मुनीर, पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है

राइगानी

    था मुनीर आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत, इस का अंदाज़ा सफ़र की राइगानी से हुआ

इख़्तियार

    मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये, ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ

दिल लहू

    सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना मुनीर, रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया

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