मैं करवटों के नए ज़ाइक़े लिखूँ शब-भर..पढ़ें राहत इंदौरी के चुनिदा शेर..
फ़रिश्तों ने इबादत की
जा-नमाज़ों की तरह नूर में उज्लाई सहर, रात भर जैसे फ़रिश्तों ने इबादत की है
सवाल आते हैं
चाँद सूरज मिरी चौखट पे कई सदियों से, रोज़ लिक्खे हुए चेहरे पे सवाल आते हैं
शबों का हिसाब
अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे, बड़े सवाब कमाए गए जवानी में
मिरी राह में बिखर जाओ
सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ, ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं
इज़्ज़त बिगाड़ देती
हमारे मीर-तक़ी-मीर ने कहा था कभी, मियाँ ये आशिक़ी इज़्ज़त बिगाड़ देती है
ज़रूरत नहीं रज़ाई की
सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को, अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की
रात की धड़कन
रात की धड़कन जब तक जारी रहती है, सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है
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