तुम ने सिर्फ़ चाहा है हम ने छू के देखे हैं पढ़ें...साहिर लुधियानवी के चुनिंदा शेर..
जानिब रवाँ
किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम, ऐ रह-रवान-ए-ख़ाक-बसर पूछते चलो
कारवाँ निकले
उधर भी ख़ाक उड़ी है इधर भी ख़ाक उड़ी, जहाँ जहाँ से बहारों के कारवाँ निकले
निज़ाम की ख़ातिर
जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से, अम्न बेहतर निज़ाम की ख़ातिर
फ़िक्र की रौशनी
आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में, फ़िक्र की रौशनी को आम करें
महबूस
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस, ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती
शहीदों के ख़ून
क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का, मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए
सूरत-ए-बयाँ
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले, अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले
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