पढ़ें इश्क पर लिखे अल्लामा इक़बाल के चुनिंदा शेर...


2024/02/04 18:27:41 IST

जुरअत हुई क्यूँकर

    उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर, मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

निगह बेबाक

    यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या, दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक

बख़्शा कि पारा पारा नहीं

    मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना, वो पैरहन मुझे बख़्शा कि पारा पारा नहीं

वही हीले हैं परवेज़ी

    ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या, तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी

नज़र आए मिटा दो

    सुल्तानी-ए-जम्हूर का आता है ज़माना, जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आए मिटा दो

ख़ार-ए-सहरा

    हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा, कम कर गिला-ए-बरहना-पाई

ख़दंग-ए-जस्ता है

    ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात, ख़दंग-ए-जस्ता है लेकिन कमाँ से दूर नहीं

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