पढ़ें पीरज़ादा क़ासीम के दर्द पर लिखे गए चुनिंदा शेर...
आप बहुत अजीब हैं
अपने ख़िलाफ़ फैसला ख़ुद ही लिखा है आपने, हाथ भी मल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
मैं कब से अपनी तलाश में हूँ
मैं कब से अपनी तलाश में हूँ मिला नहीं हूँ, सवाल ये है कि मैं कहीं हूँ भी या नहीं हूँ
साथ-साथ रोने से
अब तो मेरा दुश्मन भी मेरी तरह रोता है, कुछ गिले तो कम होंगे साथ-साथ रोने से
ख़्वाब दुनिया के
ज़िंदग़ी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के, बस रहे हैं आँखों में फिर भी ख़्वाब दुनिया के
दर्द ठहरता भी नहीं
मुझसे आगे मेरे इस दिल की लगन जाती है, मैं तो रुक जाता हूँ ये दर्द ठहरता भी नहीं
ग़म से बहल रहे हैं
ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं, दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
दिया बुझा हुआ
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ, फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ
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