Urdu Shayari: मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था ,मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था


2024/05/28 12:25:45 IST

जलील मानिकपूरी

    होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू, जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर

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शाद आरफ़ी

    कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी,कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए

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दाग़ देहलवी

    ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दर,आरज़ू की आरज़ू होने लगी

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इमरान-उल-हक़ चौहान

    ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते, जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे

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अख़्तर शीरानी

    ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना,ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते

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अहमद फ़राज़

    सब ख़्वाहिशें पूरी हों फ़राज़ ऐसा नहीं है,जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

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हसरत मोहानी

    हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें,दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या

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