Urdu Shayari: जवाँ होते ही ले उड़ा हुस्न तुम को,परी हो गए तुम तो इंसान हो कर
अख़्तर अंसारी
रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़,शबाब कहते हैं जिस चीज़ को क़यामत है
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हफ़ीज़ जालंधरी
ख़ामोश हो गईं जो उमंगें शबाब की,फिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे
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अब्दुल हमीद अदम
वो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम,नग़्मात में डूबी हुई बरसात का आलम
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लाला माधव राम जौहर
क्या याद कर के रोऊँ कि कैसा शबाब था,कुछ भी न था हवा थी कहानी थी ख़्वाब था
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आग़ा शाएर क़ज़लबाश
किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह,ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता
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अब्दुल हमीद अदम
नौजवानी में पारसा होना, कैसा कार-ए-ज़बून है प्यारे
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असर सहबाई
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का,गोया छलक रहा है पियाला शराब का
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