मिर्जा गालिब के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी कुछ खास शायरी
काफ़िर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
रौनक़
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
डुबोया
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
तग़ाफ़ुल
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन, ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक
आरज़ू
मरते हैं आरज़ू में मरने की, मौत आती है पर नहीं आती
फ़ुर्सत
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन, बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
तमाशा
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
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