पढ़ें कैफ़ी आज़मी के इश्क पर लिखे कुछ चुनिंदा शेर..
शहर
रोज़ बस्ते हैं कई शहर नए, रोज़ धरती में समा जाते हैं
मातम
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ, यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता
ख़लल
इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े, हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े
सहरा
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना, मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
ठंडी छाँव
ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप, क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद
दफ़्न
बेलचे लाओ खोलो ज़मीं की तहें, मैं कहाँ दफ़्न हूँ कुछ पता तो चले
समुंदर
कोई कहता था समुंदर हूँ मैं, और मिरी जेब में क़तरा भी नहीं
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