उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए, पढ़ें 'ख़्वाब' पर बेहतरीन शेर
जुदाई
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो...तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
आँखों
और तो क्या था बेचने के लिए...अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
मंज़र-ए-शब-ताब
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए...कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
तन्हाई
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है...ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
महताब
हर एक रात को महताब देखने के लिए...मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
आशिक़ी
आशिक़ी में मीर जैसे ख़्वाब मत देखा करो...बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
झलक
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ...काश तुझ को भी इक झलक देखूँ
उसूलों
कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे...हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे
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