ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रार...पढ़ें 'इंकार' पर बेहतरीन शेर
साहिल
साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन...तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
ख़ामुशी
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए...ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
इक़रार
इक़रार में कहाँ है इंकार की सी ख़ूबी...होता है शौक़ ग़ालिब उस की नहीं नहीं पर
रुख़्सार
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए...लीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए
झूटे वादों
साफ़ इंकार अगर हो तो तसल्ली हो जाए...झूटे वादों से तिरे रंज सिवा होता है
इक़रार
न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है...हमें फिर भी गुमाँ है वो हमीं से प्यार करता है
इंकार
जिस का इंकार हथेली पे लिए फिरता हूँ...जानता ही नहीं इंकार का मतलब क्या है
इशारे
ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रार...कितने आदाब के पर्दे में है इंकार की बात
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