ज़िंदगी किस तरह बसर होगी...पढ़ें 'मोहब्बत' पर बेहतरीन शेर
राहतें
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा...राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
काफ़िर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का...उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
ज़िंदगी
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी...दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
शब-ए-ग़म
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के...वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
मोहब्बत
हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के दाग़...जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
अंजाम
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया...जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
गिला
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी...वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
लफ़्ज़-ए-मोहब्बत
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है...सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
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