अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की, पढ़ें 'मोहब्बत' पर बेहतरीन शेर
मोहब्बत में बिरहमन
मिस्ल-ए-अंजुम उफ़ुक़-ए-क़ौम पे रौशन भी हुए...बुत-ए-हिन्दी की मोहब्बत में बिरहमन भी हुए
मोहब्बत में नाकाम
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम...मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
इंतिज़ार
वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है...उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं
मोहब्बत
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है...तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या
मायूसी
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए...अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
तकलीफ़
अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़...सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी
बेवफ़ाई
हम से क्या हो सका मोहब्बत में...ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
महफ़िल
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे...तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे
ज़िंदगी
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी...दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
अंजाम-ए-वफ़ा
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की...मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
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