आए कुछ अब्र कुछ शराब आए...पढ़ें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के बेहतरीन शेर...


2024/03/03 22:16:28 IST

मेरी ख़ामोशियों में

    मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है, मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़.

कामयाब आए

    फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल, हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए.

वीराने में चुपके से

    रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई, जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए.

सुब्ह महक महक उठी

    जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी, जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई.

बीमार दवा क्यूँ नहीं देते

    बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते, तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते.

तेरे पास हो बैठे

    सारी दुनिया से दूर हो जाए, जो ज़रा तेरे पास हो बैठे.

बहार गुज़री है.

    न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है, अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है.

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