लगावट बहुत है तिरी आँख में...पढ़ें अकबर इलाहाबादी के शेर..


2024/02/12 22:24:32 IST

हाली से पूछिए

    सय्यद की सरगुज़िश्त को हाली से पूछिए, ग़ाज़ी मियाँ का हाल डफ़ाली से पूछिए

ईमान बेचने पे हैं

    ईमान बेचने पे हैं अब सब तुले हुए, लेकिन ख़रीदो हो जो अलीगढ़ के भाव से

अहल-ए-मेज़ को राज़ी करो

    लीडरी चाहो तो लफ़्ज़-ए-क़ौम है मेहमाँ-नवाज़, गप-नवीसों को और अहल-ए-मेज़ को राज़ी करो

ऑनर की शिफ़ा हो या न हो

    क्यूँ सिवल-सर्जन का आना रोकता है हम-नशीं, इस में है इक बात ऑनर की शिफ़ा हो या न हो

वार्निश हो जाएगी

    मिमबरी से आप पर तो वार्निश हो जाएगी, क़ौम की हालत में कुछ इस से जिला हो या न हो

तालिब-ए-दीदार हुआ

    वो तो मूसा हुआ जो तालिब-ए-दीदार हुआ, फिर वो क्या होगा कि जिस ने तुम्हें देखा होगा

तहक़ीक़ करते ही रहे

    हादसे अपने तरीक़ों से गुज़रते ही रहे, क्यों हुआ ऐसा ये हम तहक़ीक़ करते ही रहे

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