हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है...पढ़ें अकबर इलाहाबादी के शेर...
तिरी पहचान
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है, तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ अकबर, यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बाद
आह जो दिल से
आह जो दिल से निकाली जाएगी, क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
अख़बार निकालो
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
क़ाबिल-ए-ज़ब्ती
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं, कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
वस्ल हो या फ़िराक़ हो
वस्ल हो या फ़िराक़ हो अकबर, जागना रात भर मुसीबत है
तालीम है सरकार की
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की, दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
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