दामन झटक के वादी-ए-ग़म से गुज़र गया..पढ़ें अली सरदार ज़ाफरी के शेर..
बस इक दिल के सिवा
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा, रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
इंक़लाब आएगा
इंक़लाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो, बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं
आवारगी ही रास आई
सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें, हम को आवारगी ही रास आई
ठिठुरी हुई परछाइयाँ
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं, नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
तख़य्युल गुनगुनाता है
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को, तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
शिकायतें भी बहुत हैं
शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत, मज़ा तो जब है कि यारों के रू-ब-रू कहिए
जुस्तुजू मेरी
इसी लिए तो है ज़िंदाँ को जुस्तुजू मेरी, कि मुफ़लिसी को सिखाई है सर-कशी मैं ने
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