मरने के बाद भी मेरी आंखें खुली रहीं...पढ़ें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर..


2024/02/07 22:45:17 IST

निसार मैं तेरी गलियों

    निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन, कि जहां, चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले

शब-ए-ग़म गुज़ार के

    दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के

हौसले पर्वरदिगार के

    इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन, देखे हैं हमने हौसले पर्वरदिगार के

तेरी याद से बेगाना कर दिया

    दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

भूले से मुस्कुरा तो दिए थे

    भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज ‘फ़ैज़’, मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के

तेरे मुक़ाबिल से आए हैं

    सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं, हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं

किस दिल से आए हैं

    उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर, कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं

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