हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं...पढ़ें जिगर मुरदाबादी के शेर..
कितना हसीं गुनाह
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं, कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
डूब के जाना है
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
दिल तुम्हारा हो गया
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका, मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
आशिक़ फैले तो ज़माना है
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है, सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
तूफ़ानों में पलते
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं, वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
मुझी को ख़राब होना था
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं, हाँ मुझी को ख़राब होना था
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
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