मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था...पढ़ें परवीन शाकिर के शेर...
धोका, देख लिया है
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था, ख़ुद को दे कर ये भी धोका, देख लिया है
तुझे मनाऊँ
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ, उलझ रहा है मिरे फ़ैसलों का रेशम फिर
अपने क़ातिल की ज़ेहानत
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं, रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे
दरवाज़ा जो खोला तो
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो, हैरत है मुझे आज किधर भूल पड़े वो
काँटों में घिरे फूल
काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन, तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा
ख़ुश-बदन हमारा हो
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें, ये कब कहा था कि वो ख़ुश-बदन हमारा हो
आँख के काजल
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है, फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह
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