बुझ रहे हैं एक इक कर के अक़ीदों के दिए...पढ़ें साहिर लुधियानवी के शेर..


2024/02/07 22:28:55 IST

संसार की हर शय

    संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है, इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है

सवालात पे रोना आया

    किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं, बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

जब तुम से मोहब्बत की

    जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला, मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है

बरसात क़रीब आ जाओ

    सर्द झोंकों से भड़कते हैं बदन में शोले, जान ले लेगी ये बरसात क़रीब आ जाओ

हक़दार तक नहीं पहुँचा

    इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद, हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा

ज़ख़्म रहगुज़ारों के

    इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के, आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के

मसअलों का हल देगी

    जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी

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