मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ...पढ़ें साहिर लुधियानवी के शेर..
ज़ंजीर नहीं
तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है, तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है, ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
गुज़रे जिधर से हम
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके, कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
रोना-रुलाना
यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना, तिरी याद तो बन गई इक बहाना
मुक़द्दर समझ लिया
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया, जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
अरे ओ आसमाँ वाले
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है, ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
अभी ज़िंदा हूँ
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में, कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
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