मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...
ख़ता
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर, कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है
परहेज़
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़, इशारा पाते ही सूफ़ी ने तोड़ दी परहेज़
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ, जू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी
जन्नत
जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना, मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
तौफ़ीक़
मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब, ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़
ज़ियाद
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं, उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
बेगाना-वार देख,
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख, है देखने की चीज़ इसे बार बार देख
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