मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...


2024/01/23 22:38:09 IST

ख़ता

    इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर, कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है

परहेज़

    ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़, इशारा पाते ही सूफ़ी ने तोड़ दी परहेज़

ज़िंदगानी

    ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ, जू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी

जन्नत

    जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना, मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है

तौफ़ीक़

    मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब, ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़

ज़ियाद

    मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं, उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद

बेगाना-वार देख,

    गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख, है देखने की चीज़ इसे बार बार देख

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